पहाडों से उतरती नदी हूँ गीत मेरा गा न सकोगे
समंदर के अन्तःतल में जा बसूँगी पता फिर पा न सकोगे ।
बह जाने दो गुनगुनानेदो
शाम की रक्ताभ मुस्कान सुबह की बेखौफ लालिमा
दिन की चिलचिलाती धूप रात का घुप्प अँधेरा पीती मुझे तुम
आते तूफानों से जरा हंस के मिलनेदो
अपना गीत ख़ुद रचती हूँ अपनी मंजिल का सही पता रखती हूँ मैं पहाडों से उतरतीनदी हूँ .....
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