Monday, September 24, 2012

दीपक  तले अन्धेरा ?
दीपक   का नहीं
  दीपक  के जन्म की दास्तान है
 दीपक के अस्तित्व की पहचान है
दीपक     तले अन्धेरा
  दीपक का विद्रोह है ,अँधेरे से
दीपक का नृत्य  है उजाले  के गीत पर
दीपक तले अँधेरा
दीपक का प्रश्न है ---
खुद से
दीपक का आश्चर्य है
खुद के होने पर
दीपक तले अन्धेरा
अंधेरी राहों पर चलनेवालों का सूरज है
एक यक्ष प्रश्न है
युधिष्ठिर कहाँ है ?

Saturday, September 15, 2012

वक्त को अहसास होने दो
जो खास है आज उसकी बात होने दो .
बनाकर रोज़ लकीरें मिटाता है वो दूसरों की
आज आईने से उसकी पहचान होने दो .
रात के घने अँधेरे में उजाले की बात करते ही हैं
कभी दिन के उजाले कों भी सलाम का अहसास होने दो.
आवाज़ न दो दिलबर की तासीर है दिल को घर बनाता नहीं
वो जहाँ जाए बस उसे ही दिल बनकर धडकने दो.

Monday, September 10, 2012

SAM in TAAL system of Indian Music and MOKSH (Salvation )in Hindu Relisgion and Philosophy

हिंदू धर्म और संस्कृति  मानवता की एक   ऐसी अक्षुण बहती धारा है जिसकी निरंतरता ने पूरे संसार को अभिभूत कर रखा है .इसे सनातन धर्म नाम भी दिया गया है .सनातन-------
अर्थात जों हमेशा से है और हमेशा रहेगा ,वक्त की कोई भीकैसी भी तीखी कुल्हाड़ी उसे काट कर उसके अस्तित्व कों ख़त्म नहीं कर सकती.
विश्व के बाकी धर्म जहाँ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों कों शक की निगाह से देखते हैं ,और एक दूसरे कों नीचा दिखाते रहे हैं ,हिन्दू धर्म उन सबके विपरीत व्यवहार करता है ,उन सबकी सारी अच्छी बातें अपने में ऐसे समा लेता है जैसे वो खुद उसकी अपनी ही हो ,क्यों ?क्योंकि दूसरे धर्मों के सारे सार्थक गुण इस धर्म में शुरू से किसी किसी रूप में समाये हुए ही हैं ...
इसकी निरंतरता का मूल मंत्र इसे खूबसूरत भारतीय संगीत की ताल पद्धति की अदभुत तकनीक से मिला है .जों साथ एक कवि का उसकी कलम और कागज़ देते है और किसी चित्रकार का उसका कैनवास और रंग देते है ,वही साथ एक   भारतीय संगीतकार कों भारतीय संगीत की ताल पद्धति और लय पर उसका अधिकार देती है -----
भारतीय संगीत की ताल पद्धति में एक अत्यंत रोचक स्थान है ---सम .
भारतीय ताल पद्धति निश्चित संख्या की गिनती पर आधारित है उस निश्चित संख्या की गिनती को सम पर अर्थात पहली मात्रा से शुरू हो कर वापस पहली मात्रा पर पहुंचना होता है ।भारतीय संगीत में कोई भी रचना जीवन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को प्रकट करने में पूरी तरह स्वतन्त्र होते हुए भी अपनी मंजिल सम को ही मानकर चलती है ....अपनी बात हर रचना सम पर ख़त्म करती है ॥जितनी खूबसूरती से बात कहनी होती है उतनी ही खूबसूरती से समय पर सम पर अपनी बात ख़त्म करनी होती है ...भारतीय ताल पद्धति धरती और अंतरिक्ष के अन्य ग्रह ,उपग्रह और तारों की तरह गोलाकार घूमती है ...जबकि पश्चिमी ताल पद्धति एक दिशा में सीधे चलती है ..
भारतीय तालों की निश्चित संख्या की मात्राएँ निश्चित संख्या के विभागों में विभाजित हो कर हर चाल की चलन (उसके चलने का तरीका )निर्धारित करती हैं ,हर ताल का ठेका किसी भाव विशेष को आकार देता है .अर्थात A particular emotion finds its place in a particular taal having a particular theka (bol).

यही संगीत की एक ऐसी तकनीक है जिसने दोनों संस्कृतियों के दर्शन को प्रभावित कर रखा है ..भारत में मोक्ष(salvation)की कल्पना है ,while WEST does not nourish this theory of SALVATION.
हिंदू सभ्यता के देवता लीलाधर है (खेल रचने और खेलने वाले )जबकि पश्चिम के लिए देवताओं का यह रूप कभी समझ में आने वाली पहेली है ..खेल में ही निश्चित समय में अपनी योग्यता का परिचय देकर या प्रदर्शन कर समय पर अपनी मंजिल पर पहुंचना होता है ...इसीमें खिलाडी और दर्शक का रिश्ता जुड़ा है .. इस रिश्ते का आधार आनंद है ...इसकी मंजिल आनंद है ...हिंदू संस्कृति संसार के रचयिता को सत चित्त आनंद स्वरूप में देखती है और संसार को सत ,राज और तम के गुणों का अखाडा या खेल का मैदान ..........ये हिंदू संस्कृति और दर्शन का वो तत्व है जिसने मोक्ष की कल्पना की है ....और यही हिंदुत्व की धारा को अक्षुण बनाये है ....हिन्दू धर्म कों मानने वाला सत ,राज और तम नामक गुणों को मोक्ष मार्ग पर पहुँचने वाली बाधा या मित्र समझ कर काम लेता है .इसी तरह भारतीय संगीत का विद्यार्थी हर मुश्किल या सरल रचना को प्रस्तुत करते समय जानता है कि उसे समय पर सम पर पहुँच कर विश्राम करना है और एक नयी रचना को प्रस्तुत करने की तैयारी करनी है या उससे साक्षात् करने के लिए तैयार होना है ...हमारे पास मोक्ष है ...अर्थात सम है ...अर्थात जीवन के परे ---इस जीवन से खूबसूरत जीवन को पाने का विशवास है और पुनः लौटकर इस जीवन में कर ...इस जीवन में अधूरे रह गए  अपने सपनों को पूरा करने का आश्वासन भी ....हमारे लिए जीवन एक निरंतर अक्षुण बहती धारा है इसीलिए हमारी संस्कृति भी सारे तूफानों और आक्रमणों को सहते हुए भी अपनी पहचान बचाए हुए है या बनाये हुए है . अतः हिंदुत्व - वो जीवन पद्धति है जो अपने नाम के लिए लड़े बिना भी अपनी पहचान को अक्षुण बनाये रख सकती है ..वो अपने ऊपर आक्रमण करने वालों को अपने में आत्मसात कर अक्षुण बनी रहती है ....यदि कोई हिंदूवादी भारत का प्रधान मंत्री बनेगा तो फासिस्ट हिन्दू होगा इसमें शक है .....और यदि होगा तो हिंदुत्व की मुख्य धारा से अत्यंत दूर होगा अतः अंत में ----भारतीय संगीत की ताल पद्धति भारतीयता की या यूँ कहें हिन्दू धर्म की जुड़वां बहन है और हिन्दू धर्म की अक्षुण बहती धारा की ताकत है ..........I am proud of being a Hindu ,I do love and respect every religion ,I feel it like my own ,I am happy because ---हम सनातन हैं and always would be.....

Monday, September 3, 2012

सनातन धर्म ,हिन्दू धर्म और भारतीय संगीत की ताल पद्धति

 
हिंदू धर्म और संस्कृति  मानवता की एक   ऐसी अक्षुण बहती धारा है जिसकी निरंतरता ने पूरे संसार को अभिभूत कर रखा है .इसे सनातन धर्म नाम भी दिया गया है .सनातन-------
अर्थात जों हमेशा से है और हमेशा रहेगा ,वक्त की कोई भी,  कैसी भी तीखी कुल्हाड़ी उसे काट कर उसके अस्तित्व कों ख़त्म नहीं कर सकती.
विश्व के बाकी धर्म जहाँ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों कों शक की निगाह से देखते हैं ,और एक दूसरे कों नीचा दिखाते रहे हैं ,हिन्दू धर्म उन सबके विपरीत व्यवहार करता है ,उन सबकी सारी अच्छी बातें अपने में ऐसे समा लेता है जैसे वो खुद उसकी अपनी ही हो ,क्यों ?क्योंकि दूसरे धर्मों के सारे सार्थक गुण इस धर्म में शुरू से किसी न किसी रूप में समाये हुए ही हैं ...
इसकी निरंतरता का मूल मंत्र इसे खूबसूरत भारतीय संगीत की ताल पद्धति की अदभुत तकनीक से मिला है .जों साथ एक कवि का उसकी कलम और कागज़ देते है और किसी चित्रकार का उसका कैनवास और रंग देते है ,वही साथ एक   भारतीय संगीतकार कों भारतीय संगीत की ताल पद्धति और लय पर उसका अधिकार देती है -----
भारतीय संगीत की ताल पद्धति में एक अत्यंत रोचक स्थान है ---सम .
भारतीय ताल पद्धति निश्चित संख्या की गिनती पर आधारित है उस निश्चित संख्या की गिनती को सम पर अर्थात पहली मात्रा से शुरू हो कर वापस पहली मात्रा पर पहुंचना होता है ।भारतीय संगीत में कोई भी रचना जीवन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को प्रकट करने में पूरी तरह स्वतन्त्र होते हुए भी अपनी मंजिल सम को ही मानकर चलती है ....अपनी बात हर रचना सम पर ख़त्म करती है ॥जितनी खूबसूरती से बात कहनी होती है उतनी ही खूबसूरती से समय पर सम पर अपनी बात ख़त्म करनी होती है ...भारतीय ताल पद्धति धरती और अंतरिक्ष के अन्य ग्रह ,उपग्रह और तारों की तरह गोलाकार घूमती है ...जबकि पश्चिमी ताल पद्धति एक दिशा में सीधे चलती है ..
भारतीय तालों की निश्चित संख्या की मात्राएँ निश्चित संख्या के विभागों में विभाजित हो कर हर चाल की चलन (उसके चलने का तरीका )निर्धारित करती हैं ,हर ताल का ठेका किसी भाव विशेष को आकार देता है .अर्थात A particular emotion finds its place in a particular taal having a particular theka (bol).

यही संगीत की एक ऐसी तकनीक है जिसने दोनों संस्कृतियों के दर्शन को प्रभावित कर रखा है ..भारत में मोक्ष(salvation)की कल्पना है ,while WEST does not nourish this theory of SALVATION.
हिंदू सभ्यता के देवता लीलाधर है (खेल रचने और खेलने वाले )जबकि पश्चिम के लिए देवताओं का यह रूप कभी न समझ में आने वाली पहेली है ..खेल में ही निश्चित समय में अपनी योग्यता का परिचय देकर या प्रदर्शन कर समय पर अपनी मंजिल पर पहुंचना होता है ...इसीमें खिलाडी और दर्शक का रिश्ता जुड़ा है .. इस रिश्ते का आधार आनंद है ...इसकी मंजिल आनंद है ...हिंदू संस्कृति संसार के रचयिता को सत चित्त आनंद स्वरूप में देखती है और संसार को सत ,राज और तम के गुणों का अखाडा या खेल का मैदान ..........ये हिंदू संस्कृति और दर्शन का वो तत्व है जिसने मोक्ष की कल्पना की है ....और यही हिंदुत्व की धारा को अक्षुण बनाये है ....हिन्दू धर्म कों मानने वाला सत ,राज और तम नामक गुणों को मोक्ष मार्ग पर पहुँचने वाली बाधा या मित्र समझ कर काम लेता है .इसी तरह भारतीय संगीत का विद्यार्थी हर मुश्किल या सरल रचना को प्रस्तुत करते समय जानता है कि उसे समय पर सम पर पहुँच कर विश्राम करना है और एक नयी रचना को प्रस्तुत करने की तैयारी करनी है या उससे साक्षात् करने के लिए तैयार होना है ...हमारे पास मोक्ष है ...अर्थात सम है ...अर्थात जीवन के परे ---इस जीवन से खूबसूरत जीवन को पाने का विशवास है और पुनः लौटकर इस जीवन में आ कर ...इस जीवन में अधूरे रह गए  अपने सपनों को पूरा करने का आश्वासन भी ....हमारे लिए जीवन एक निरंतर अक्षुण बहती धारा है इसीलिए हमारी संस्कृति भी सारे तूफानों और आक्रमणों को सहते हुए भी अपनी पहचान बचाए हुए है या बनाये हुए है . अतः हिंदुत्व - वो जीवन पद्धति है जो अपने नाम के लिए लड़े बिना भी अपनी पहचान को अक्षुण बनाये रख सकती है ..वो अपने ऊपर आक्रमण करने वालों को अपने में आत्मसात कर अक्षुण बनी रहती है ....यदि कोई हिंदूवादी भारत का प्रधान मंत्री बनेगा तो फासिस्ट हिन्दू होगा इसमें शक है .....और यदि होगा तो हिंदुत्व की मुख्य धारा से अत्यंत दूर होगा अतः अंत में ----भारतीय संगीत की ताल पद्धति भारतीयता की या यूँ कहें हिन्दू धर्म की जुड़वां बहन है और हिन्दू धर्म की अक्षुण बहती धारा की ताकत है ..........I am proud of being a Hindu ,I do love and respect every religion ,I feel it like my own ,I am happy because ---हम सनातन हैं and always would be.....

लय और ताल

लय और ताल
लय बिना संगीत की कल्पना करना संभव नहीं .
भारतीय संगीत में तो ताल के बिना भी संगीत की कल्पना असंभव ही है .
ताल शब्द से जों सबसे पहले चीज़ या शब्द दिमाग में आता है वो है rhythm .
लेकिन भारतीय संगीत में ताल rhythm के सन्दर्भ में वो तकनीक है जिसे जाने और सीखे बिना भारतीय संगीत का कोई भी कलाकार चाहे वो गायक हो ,कोई संगीत वाध्य बजाता हो या कोई भी नृत्य करता हो (ताल शाष्त्र को पढ़े बिना ,जाने बिना) अपने चयनित विषय की पहली पंक्ति भी नहीं सीख पायेगा .क्यों ?
भारतीय संस्कृति 5000 वर्ष पहले से ही एक परिष्कृत संस्कृति है .जब आज के विश्व की अन्य सभ्यताएं जंगलों में रह रही थी तब भारतीय संस्कृति अपने विकास के उस उच्चतम शिखर पर थी . जों आज के 21वीं सदी के लिए भी एक अध्ययन का विषय है .भारतीय संगीत भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तरह बहु आयामी रहा है .
इतिहास करवटें बदलता रहा- इतिहास के घने अन्धकार से निकलने में भारतीय समाज को अपनी पुरानी चेतना शक्ति प्राप्त करने प्रयास करना पड़ा होगा और उसमे समय लगा होगा ,किन्तु भारतीय संगीत का इतिहास तो यही बता है कि इतिहास का कोई भी पन्ना चाहे काले अक्षरों से लिखा हो या स्वर्ण अक्षरों से संगीत ने दोनों पन्नों पर अपना काम बिना किसी पक्षपात के किया . यद्यपि धारणा है कि ब्रिटिश काल में संगीत का पतन हुआ किन्तु मेरी समझ कहती है संगीत इस समय अपने लिए कुछ ठिकाने ढूंढ छिप कर बैठ गया ----पूरी शक्ति से विशाल वट वृक्ष की तरह पनपने के लिए ..उसने विष्णु दिगम्बर पलुस्कर और विष्णु नारायण भातखंडे जैसे संगीत के महा नायकों की कठिन तपस्या से अपने लिए वो राह बना ली जिससे आज वो जनसामान्य का भी उतना अपना है जितना कभी घरानेदारों का होता था .आज का संगीत अपने हर प्यार करने वाले का एकदम अपना है .
ताल के सदर्भ में इतनी बात का क्या फायदा ?
इसका उत्तर सिर्फ़ इतना है कि भारतीय rhythm शाष्त्र लय से आगे या कहें पहले बहुत कुछ है तथा भारतीय संगीत को सीखने की पहली सीढ़ी ताल को समझना है ,इस सीढी को पार कर के ही आप अपनी पसंद का वाध्य बजा सकते हैं ,गा सकते हैं या नाच सकते हैं ...
इतनी महत्वपूर्ण चीज़ ताल है क्या ?
ताल - मात्राओं के समूह को भारतीय संगीत में ताल कहते हैं .
हर ताल कुछ निश्चित संख्या के अंकों ( numbers ) से बनी होती है .
इन्हीं अंकों को मात्रा नाम दिया गया है ,क्यों ? -
क्योंकि मात्रा शब्द हिंदी भाषा का शब्द है ,जों किसी भी चीज़ को नापने के काम आता है या quantity बताने के काम आता है .
ताल में यही मात्रा शब्द ताल की लम्बाई का अनुमान लगाने के काम आता है ,उदहारण के लिए -तीनताल मे 16 मात्रा होती है अर्थात एक से लगाकर सोलह अंक से बनती है तथा दादरा ताल मे एक लगाकर 6 तक अंक होते है जिन्हें संगीत का विद्यार्थी इस तरह बताता है -तीनताल सोलह मात्रा से बनती है तथा दादरा ताल छह मात्रा से बनी होती है अतः यह अनुमान लगाना सरल हो जाता है कि तीनताल दादरा ताल से एक बड़ी ताल है .

ताल एक तरह का imaginary frame है या ढांचा है, जिसमे गीत के बोल फिट किये जाते है .इस तरह गीत का एक स्वरुप या rough ढांचा हमें मिलता है जिसमें लय की सहायता से फिनिशिंग टच (touch ) दिया जाता है ,लय जितनी correct होगी ताल के frame में तैयार गीत के rough ढाँचे की खूबसूरती उतनी ही ज्यादा होगी... ,ताल -concrete है , लय abstract है .
ताल को समझना और प्रस्तुत करना जितना सरल है लय को समझना उतना ही कठिन है ,एक कलाकार का लय पर जितना अधिक अधिकार होगा उसकी कला का जादू उतना ही ज्यादा होगा .
इसे उदहारण द्वारा समझना हो तो -नृत्य में पंडित बिरजू महाराज और गायन में लता मंगेशकर का जों जादू दशकों से संगीत जगत मैं छाया है उसमें
अन्य अनेक कारणों में इन दोनों कालजयी कलाकारों का सबसे बड़ा कारण लय पर असामान्य अधिकार होना है ,इसको मैं इस बात से सिद्ध करना चाहूंगी कि जिसने भी उनकी कला का साक्षात्कार किया किसी भी कारण से तथा किसी भी मन से ,उसके अंतर्मन के उन अंधियारे कोनो मैं रौशनी चमक उठी जिन कोनों का उसे खुद भी कभी भान नहीं था कि ये उसके खुद के हिस्से हैं .उसका जीवन इतनी दूर तक फैला है ,वो इतनी बड़ी दुनियां का मालिक है .

लय संगीत की आत्मा है .
जिस कलाकार का लय पर अधिकार है वो कला के क्षेत्र में नए -नए ब्रह्मांडों की रचना कर सकता है और करता है .किसी भी रचना में महसूस की जाने वाली भावना का एकमात्र कारण उसकी लय है .स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर सुरीली है ,उनके गायन में लय है वो सब है लेकिन वो जिस लय में शब्दों का उच्चारण करती है वो- गीत के शब्दों को ऐसा जीवन दान दान देता है कि वो गीत हमेशा के लिए अमर हो जाता है .
अतः ताल ---
A group of definite  number of Matras is known as Taal.
These definite  number of Matras are divided into number of divisions .
Every taal has definite number of Taali and Khali.
and to understand more about the properties of Taal-
MATRA-every Taal is made up of fix numbers and these numbers are known as Matra.
VIBHAG-The fix Matraas of every Taal is divided into fix divisions known as Vibhaag.
TAALI  /KHALI-while reciting a Taal on hand ,on the beginning of a new division we either clap or slightly bend our one palm ,clap is known as Taali and bending of palm is to show khali.
LAYA-Gati in Hindi or speed in English is known as Laya in music.
Speed =ditance upon time 
There are three types of Laya in music.
Vilambit Laya-it is slower than the speed we mostly adopt in our day to day life to do our daily work.
Madhya Laya-Its the same speed we are mostly accustomed to do our daily work,neither slow nor fast.
Drut Laya-It is faster than the Madhya Laya.