Monday, December 31, 2012

नए साल की सुबह
जंग खाए दरवाजों की ग्रीज़िंग कर गयी है
मट्मेली पडी दीवारों पर रंग कर गयी है
हर घर के सामने की सड़क कुछ और चौड़ी कर गयी है
इस साल की बाकी और सुबहे क्या करने वाली हैं ये तो उनके आने पर ही पता चलेगा
पर आज की नीलिमा आकाश की गुनगुनाती सी लग रही है
और मैं ठिठकी सी नए युग के आगमन के इंतज़ार में उसे मेरा साथी   समझ उसके गीत में मेरा भी खोया कोई सुर ढूँढ़ रही हूँ ............
हाँ ,मैं गलती से ही आज के दिन किसी पार्टी में  गयी हूँ
फिर भी बेचूक आज के दिन
समय सारी औपचारिकताएं भूल मेरी शाम की चाय पर आ धमकता है
मेरी  कड़क चाय को और कड़क करने
मेरी अलमारी में सहेज कर रखी चीज़ों को और सहेजने ---
नयी चीज़ों को रखने के लिए जगह बनाने
मेरे घर की हर दीवार ,हर दरवाजे की जांच पड़ताल करने
वो मेरे कंधे पर इस तरह हाथ रखता है जैसे वो मेरे सारे गम और मेरी सारी खुशियाँ पहचानता है
मुझे ये अहसास कि कोई है जिसके आगे मैं अपने खुद के आंसू ढलका सकती हूँ ,जिसके आगे मैं अपनी खुद की हंसी हंस सकती हूँ
पंख लगा देता है
मैं आनन् फानन में सामने जाती सड़क की लम्बाई नाप लेती हूँ
रात के अँधेरे में
आज की ठण्ड से डरी सहमी मैं
नींद के उजालों से खुलकर मिलती हूँ
उन उजालों की बात ध्यान से सुनती हूँ
और सोचती हूँ 
मेरी ही आँखें बंद होगी जो कदम -कदम पर अपने अंधरों से डरी  मैं इन  उजालों से  दया की गुहार  लगाती  रही
अरे .मैं तो इनकी कितनी अपनी हूँ !
फिर अगले दिन से समय ने जैसे मेरी अलमारी जमाई होती है ,
उसके ,मेरे  कमजोर पड़ते दीवारों और दरवाजों को 
नया चूना और कीलों से दी मजबूती को
मैं पूरा सम्मान देती हूँ .
मैं पूरा साल समय के मजबूत हाथों से मेरे कंधे थपथपाने का इंतज़ार करती
उसके आज वाले प्यार को ढूँढती रहती हूँ
उसकी बनायी दीवारों और दरवाजों को पूरा सम्मान देती
आज की ढलती शाम भी समय से मुझे  हमेशा की तरह रूबरू करा रही है
मैं क्या फिर एक साल समय के इस प्यार का इंतज़ार करूंगी

Thursday, December 6, 2012

कहीं कुछ तो हुआ है
शायद ,सूरज ने सागर की बाहों में
पनाह लेने से पहले मेरा नाम लिया है
आज की शाम में कहीं सुबह की दस्तक सुनाई दी है
कहीं कुछ तो हुआ है
शायद, सूरज ने सागर की बाहों में
पनाह लेने से पहले मेरा नाम लिया है
आज की शाम में कहीं सुबह की दस्तक सुनाई दी है

Tuesday, October 2, 2012

ग्रहों की शान्ति

ग्रहों की नाराजगी  दूर करें -
1-सूर्य-(The Sun) भूल कर भी झूठ न बोलें,सूर्य का गुस्सा कम हो जाएगा .झूठ क्या है ?झूठ वो है जो अस्तित्व में नहीं है और यदि हम झूठ बोलेंगे तो सूर्य को उसका अस्तित्व(Existence) पैदा करना पडेगा (आश्चर्य की कोई बात नहीं है -ये नौ ग्रह हमारे जीवन के लिए ही अस्तित्व (existence)में आये हैं )सूर्य का काम बढ़ जाएगा और मुश्किल भी हो जाएगा .
2-चंद्रमा (The Moon)-- जितना ज्यादा हो सके सफाई पसंद हो जाईये ,और साफ़ रहिये भी -चंद्रमा का गुस्सा कम हो जाएगा .
चंद्रमा को सबसे ज्यादा डर राहू से लगता है .राहू अदृश्य ग्रह है  ,राहू क्रूर है .हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में राहू गंदगी है .हम हमारे घर को, आसपास के वातावरण को कितना भी साफ़ करें -उसमें ढूँढने जायेंगे तो गंदगी मिल ही जायेगी ,या हम हमारे घर और आस पास के वातावरण को कितना भी साफ़ रखें वो गंदा हो ही जाएगा और हम सब जानते हैं कि गंदगी कितनी खतरनाक हो सकती है और होती है --ज़िंदगी के लिए ,न जाने कितने बेक्टीरिया , वायरस ,जो अदृश्य होते हुए भी हमारी ज़िंदगी को भयभीत कर देते हैं ,बीमार करके  ,ज़िंदगी को खत्म तक कर देते हैं ,चंद्रमा (जो सबके मन  को आकर्षित करता है स्वय राहू के मन को भी) राहू से डरता है .अतः यदि आप साफ़ रहेंगे तो चंद्रमा को अच्छा लगेगा और उसका क्रोध शांत रहेगा . चंद्रमा का गुस्सा उतना ही कम हो जाएगा .
मंगल(Mars)-यह ग्रह सूर्य का सेनापती ग्रह है भोजन में गुड है .सूर्य गेंहू है रविवार को गेहूं के आटे का चूरमा गुड डालकर बनाकर खाएं खिलाये ,मंगल को बहुत अच्छा लगेगा .सूर्य गेहूं है -मंगल  गुड है और घी चंद्रमा है ,अब तीनो प्रिय मित्र हैं तो तीन मित्र मिलकर जब खुश होंगे तो गुस्सा किसे याद रहेगा .
3-बुध (Mercury)-बुध ग्रह  यदि आपकी जन्म पत्रिका में  क्रोधित है तो बस तुरंत मना लीजिये -- गाय को हरी घास खिलाकर -
धरती और गाय दोनों शुक्र  (Venus)ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है .
हरी घास है जो बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है -बुध ग्रह का रंग हरा है ,वो बच्चा है नौ ग्रहों में शारीरिक रूप से सबसे कमजोर और बौद्धिक रूप में सबसे आगे आगे .
 घास है जो पृथ्वी के अन्य पेड़ पौधों के मुकाबले कमजोर है बिलकुल बुध ग्रह की तरह , घास भी शारीरिक रूप से बलवान  नहीं होती है मगर ताकत देने में कम नहीं अतः बुध स्वरूप ही है .हरी हरी घास से सजी धरती कितनी सुंदर और खुश दिखती है -घास =बुध और धरती = शुक्र
इसी तरह गाय हरी -हरी  घास खा कर कितनी खुश होती है
इसलिए - हरी- हरी घास =बुध ग्रह
और गाय (और धरती )= शुक्र
इसलिए गाय को हरी हरी घास खिलाएंगे तो दो बहुत अच्छे दोस्तों को मिला रहे होंगे -ऐसी हंसी खुशी के वातावरण में हर कोई गुस्सा थूक देता है और बुध ग्रह भी अपना क्रोध शांत कर लेंगे .
4-बृहस्पति (Jupiter)-चने की दाल parrots को खिलादे .बृहस्पति कभी गुस्सा नहीं करेंगे.
चने की दाल पीले रंग की होती है और बृहस्पति भी पीले रंग के हैं .
बृहस्पति का भी घनत्व सौरमंडल में ज्यादा है और चने की दाल भी हलकी फुल्की नहीं होती पचाने में हमारी आँतों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है .
तोता हरे रंग का होता है .बुध ग्रह भी हरे रंग का होता है .
तोता भी दिन भर बोलता रहता है और बुध ग्रह भी बच्चा होना के कारण बोलना पसंद करता है .
अतः तोता =बुध ग्रह 
और चने की दाल = बृहस्पति ग्रह
बुध ग्रह बृहस्पति के  जायज पुत्र  और चंद्रमा के नाजायज पुत्र है. 
बुध के पिता बृहस्पति हैं और बृहस्पति के चंद्रमा अच्छे मित्र हैं और बृहस्पति की पत्नी तारा ने चंद्रमा से नाजायज शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बुध ग्रह को जन्म दिया था इस बात से बृहस्पति   अपनी पत्नी तारा से नाराज़ रहते है और बुध की माँ से  नाराज़   रहने के कारण अपने जायज पिता बृहस्पति से बुध ग्रह नाराज़ रहता है .इस बात से बृहस्पति दुखी रहता है अतः जब तोता जो बुध स्वरूप है जब चने की दाल खाकर पेट भरेगा और खुश होगा तो बृहस्पति को खुशी मिलेगी और गुस्सा तो अपने आप कम हो जाएगा .
शुक्र(Venus) - यदि नाराज़ हो तो गाय को रोटी खिलाओ .
सूर्य गेहूं है
और शुक्र गाय .
किस बलवान व्यक्ति को उसके खुद के अलावा कोई और राजा हो तो अच्छा लगता है !
शुक्र को भी सूर्य के अधीन रहना पसंद नहीं है अतः जब आप उसके शत्रु सूर्य जो गेहूं को गाय जो शुक्र है को खिलाएंगे तो वो अपने आप ही गुस्सा भूल जाएगा .
शनि(Saturn) -जिस किसी से भी नाराज़ हो तो उसकी पीड़ा तो बस वो खुद ही जानता है .
शनि समानतावादी है .The planet Saturn is one and only real democrat in our Solar System.He does not like Monarchy.
ये बड़ा है और ये छोटा है ऐसी बातें शनि को क्रोधित कर देती है
क्योंकि शनि  सूर्य (राजा ) का पुत्र है और उसके पिता सूर्य ने उसकी माँ का सम्मान नहीं किया इसलिए शनि को अपनी माँ छाया से प्यार होने के कारण सूर्य पर बहुत गुस्सा आता है --किसी का बड़े होने का अहंकार ज़रा भी नहीं भाता है .
अतः जो सर्वहारा वर्ग (मेहनतकश लोग )है उसको खुश रखो तो शनि खुद ही खुश हो जाएगा .आपको उन्हें दान नहीं देना है क्योंकि शनि  श्रम का पुजारी है .शनि ईमानदार है और मेहनतकश लोग भी दान लेने के बजाय मेहनत कर के खुश रहते हैं अतः किसी मेहनतकश की मेहनत का तन ,मन और धन से उचित सम्मान करने से शनि खुश हो जाता है और खुश हो जाएगा तो गुस्सा तो कम हो ही जाएगा .
राहू -राहू के दिए दुःख गैबी होते हैं (जिनका कारण समझ में ना आये ).
राहू स्वय अदृश्य रहता है .(अतः उसके दिए दुखों को समझना भी मुश्किल है ).
राहू एक हिस्सा उसके शरीर का ऊपरी भाग वो स्वय है और उसके नीचे का हिस्सा केतु है .(समुद्र मंथन के समय छल से देवताओं का रूप धर अमृत पीने जब वो आया तो विष्णु ने उसे पहचान लिया और अपने सुदर्शन चक्र से उसके दो टुकड़े कर दिए (एक बूँद अमृत उसके शरीर में जा चुका था अतः उसकी मृत्यु नहीं हुयी )ऊपर का हिस्सा राहू कहलाया और नीचे का हिस्सा केतु )

Monday, October 1, 2012

राशियों का व्यक्तित्व

नौ ग्रहों के व्यक्तित्व को जानने  के बाद आईये हम समझते बारह राशियों को -जों इन ग्रहों के या तो घर है या ऑफिस जहां इन्हें अपने काम के लिए जाना ही पड़ता है -
1-मेष(Aries) -यह सबसे पहली राशी है और  अग्निप्रधान राशी है .सूर्य के सेनापति मंगल ग्रह ने सबसे पहले इस पर अपना अधिकार कर लिया -मैं सेनापति हूँ ,मैं सबसे पहले हूँ और मेरा सबसे पहला अधिकार है आदि आदि (Extreme of everything is a normal approach for  a warrior). अब आप समझ जायेंगे कि ये राशी आपको रिश्ते मित्र ,संपत्ति ,परिवार जों भी देगी अपनी मुहर लगाकर देगी -सैनिक का काम है तो हल्का फुल्का तो होगा ही नहीं .

2-वृष  (Taurus)-यह पृथ्वी प्रधान राशी है .नौ ग्रहों में  सृजनात्मक  (Creativity  production ,reproduction)  गुण शुक्र ग्रह (Venus) को  भाते  हैं  क्योंकि शुक्र ग्रह रूमानियत से भरा है इसलिए इस राशी को शुक्र ग्रह ने अपना बना लिया .यैसे भी असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने सोचा कि पहली राशि सूर्य (जों विष्णु का अवतार है) के सेनापति के पास चली गयी तो अपन मौक़ा न खोयो और इसको लेलो .यहाँ शुक्र अपना रूमानी स्वभाव ताले में बंद रखते हैं और चुपचाप अपना काम करते हैं ,हर जगह यदि रूमानियत ही दिखाते रहेंगे तो काम कब करेंगे यहाँ शुक्र बातें कम और काम के काम ज्यादा करते हैं .बाक़ी ग्रहों में मंगल को छोडकर सभी ग्रह अपना ठीक ठाक फल देने की कोशिश करते रहते हैं .
3-मिथुन (Gemini)- दो भाई की शक्ल की राशी है ,childish है by nature .  बुध ग्रह (Mercury ) जों स्वयम एक बच्चा है -को ये भा गयी ,उसने इसे ही अपना घर बना लिया .बुध ग्रह क्योंकि खुद बच्चा है इसलिए बाक़ी शक्तीशाली ग्रहों में अपना दिमाग लगाकर काम करता है .इसलिए मिथुन राशि में कोई ग्रह जाएगा तो मेष राशी की तरह ,मैं बलवान हूँ का tag नहीं लगाएगा ,वृष राशी की तरह सृजनात्मक भी नहीं होगा ,intellectual हो जाएगा .कोई भी ग्रह बच्चे बुध से नाराजगी दिखाकर अपनी जग हंसाई नहीं कराते और अपना काम इस राशि में अच्छी तरह अच्छे मूड में करते रहते हैं ,बस उन्हें बौधिक intellectual होना पड़ता है जो मंगल ग्रह जैसे सेनापति को बिलकुल पसंद नहीं ,इस घर या राशि में तो मंगल ग्रह की वीरता की वाट लगी रहती है .उसकी वीरता या जोश गलत जगह लग जाता है और उसकी जग हंसाई हो जाती है .
4-कर्क (Cancer ) -यह जल प्रधान राशि है .चंद्रमा जो अग्नि रूप सूर्य का मंत्री ,मित्र सब है ,ने दिमाग लगाकर इस राशी को अपना बना लिया .अतः इस राशि का मकान मालिक चंद्रमा है .चंद्रमा स्वयम जल रूप है ,सौन्दर्य प्रेमी है ,जों जीवन के भौतिक सुखों को जीनेवाला ग्रह है .यह सूर्य का मंत्री क्यों है ?क्योंकि चंद्रमा धरती का उपग्रह है और धरती का ही एक अंश है . हमारे सौरमंडल में पृथ्वी पर ही जीवन है अतः धरती का अपना हिस्सा ही यदि राजा जो कि सूर्य है का मंत्री बन जाएगा तो राजा का कार्य धरती पर  सुगमता से (easily ) हो जाएगा. है, ना मजेदार  बात ,भाई ...communication gap  कम  हो  जाएगा! ऐसी ठंडी खूबसूरत राशी में जा कर हर ग्रह अपना the best देने की कोशिश करता है .चंद्रमा जल(water) प्रधान है.पानी  को  कैसे - जिस बर्तन में डालोगे वैसा ही आकार ले लेगा ,राजा को ऐसे कूटनीती में माहिर मंत्री ही तो चाहिए .किसी को पता ही ना चले और उसका अपना बनकर उसके मन की बात निकल वाले .यहाँ पर फ़िर मंगल ग्रह को रोना आ जाता है क्योंकि वीर बहादुर सेनापति को चंद्रमा की तरह जीना नहीं आता और वो निराश और हताश हो जाता है .अन्यथा सभी अन्य ग्रह इस राशि में चंद्रमा के शत्रु हो तो भी अपना मूल स्वभाव भूल कर चंद्रमा की तरह  खूबसूरत ,ज्ञानी,ध्यानी बन जाते  है .इस राशी में सभी ग्रहों का फल शुभ ही जानना चाहिए .
5- सिंह (Leo  )- यह सूर्य की अपनी एकमात्र राशी है .सूर्य खुद अग्नि रूप है उसी तरह यह राशी भी अग्नि रूप है .इस राशी में भौतिक सुख कम और आत्मिक सुख अधिक कर के आंकने चाहिए .खुद सूर्य भी इस राशी में भौतिक सुख नहीं देता है क्योंकि भौतिक सुख  अग्नि के स्पर्श से ही नहीं उसकी निकटता से ही जल जाते है .
6-कन्या (Virgo) -यह राशी बुध ग्रह की अपनी दूसरी राशी है या कहें मकान है .यहाँ आते आते बुध ग्रह बच्चे से बड़ा हो जाता है .बुध को क्योंकि सूर्य का साथ ही अधिक भाता है अतः वह  बड़ा हो कर सूर्य की तरह ही दिखना चाहता है लंबा चौड़ा ,मोटे मोटे हाथ पैरों वाला .इस राशि में मंगल ग्रह जो बुध ग्रह से बहुत  नाराज़ रहता है (क्योंकि हर समय- हर बात पर गिनती करनेवाले ,व्यापार वाणिज्य में प्रवीण बुध से और मीठी मीठी बातें करके हमेशा सूर्य के साथ रहने की उसकी कला से मंगल नाराज़ रहता है क्योंकि यह उसके उसके स्वभाव के विपरीत है )वह अशुभ फल देता है बाक़ी सभी ग्रह इस राशि में जब किरायेदार की हैसियत से रहते हैं तो अपनी तरफ से बुध ग्रह के प्रति अपना प्रेम दिखाते हुए अच्छा फल देने की कोशिश करते हैं .
7-तुला(Libra)-यह शुक्र ग्रह की अपनी दूसरे नंबर की राशी है या घर है .शुक्र प्रेम का देवता है .रूमानियत से भरपूर .(Romantic in nature).यह राशी सभी ग्रहों को पसंद आये जैसी नहीं है .किन्तु हमेशा दुःख को सर्वोपरी मानने वाले शनि देव इस राशी में आते ही अपना स्वभाव बदल लेते  है  ,शुक्र ग्रह  के गुण अपनाने में सफल रहते हैं .शनि ग्रह का सबसे सुंदर फल इस राशि में मिलता है .मंगल यहाँ जितने तरह की  Romantic relationship try कर सकेगा करेगा .सूर्य क्योंकि राजा है इसलिए किसी का बुरा तो कर नहीं सकता बस इस घर में आके अपना राजा होने का गुण छोड़ गाने बजाने लगता है .
8- वृश्चिक (Scorpio)-यह राशी बहुत बड़ी .कंटीली झाड़ियों वाली उबड़ खाबड़ .दलदली जमीन वाली है .जब कोई काम करने से सभी डरने लगें तो एक सिपाही आगे आता है .हमारे सौरमंडल  का एकमात्र सिपाही या यूँ कहें Commando है मंगल ग्रह या Mars और इसने इस राशी को अपना दूसरा घर बनाया मगर मंगल खुद है अग्नि और ये राशी है दलदल वाली तो इस राशी में कितना धुंआ  होगा यह बहुत आराम से  समझा जा सकता है .इस दुखदायी राशी में क्योंकि सूर्य के सेनापती की राशी है तो यहाँ पर सूर्य और मंगल कुछ सीमा तक बृहस्पति भी अपना शुभ फल देने की कोशिश करते हैं किन्तु बाकी ग्रहों की तो जान मुसीबत में फसी रहती है .बुध ग्रह ,शुक्र ग्रह ,शनि ग्रह अपना सारा गुसा इसी राशी में आने पर निकालते है (क्या कहा !उनका गुस्सा शांत कैसे होगा ?)जब आप इतना समझ गए हैं तो धीरे धीरे उनका गुस्सा कम कैसे होगा यह भी जान जायेंगे .
9-धनु (Sagittarius )-बड़ी देर में बृहस्पति(Jupiter) जो सौरमंडल में सूर्य का  मित्र और गुरु हैं ने वृश्चिक राशी को देखकर  सोचा कि-" अब ले लो जो भी राशी मिले नहीं तो पता नहीं अंत में क्या लेना पड़े" .धनु राशी अग्नि प्रधान है ,लेनी तो सूर्य को चाहिए थी मगर सूर्य ने सोचा अभी तक बृहस्पति (Jupiter) के हिस्से में कुछ भी नहीं आया है सो बृहस्पती ने ले ली ये राशी .बृहस्पती जो मनुष्य जीवन के श्रेष्ठ भौतिक सुख (सांसारिक सुख ) देनेवाले हैं थोड़े वैराग्य को धारण कर लेते हैं क्योंकि यह राशी अग्नि प्रधान है .अतः अपने सांसारिक सुख कम कर देते हैं .भाई उन्हें गर्मी लगती है .जहां तक अन्य  ग्रहों की बात है तो वो सब यहाँ शैतानी नहीं करते है ,गुस्सा नहीं करते हैं भाई गर्मी तो उन्हें भी लगती है मगर शोर शराबा नहीं करते है हाँ इस राशी की गर्मी के कारण भौतिक या सांसारिक सुख तो अपनाप ही कम हो जाते हैं .बृहस्पति का घर है अतः ख़त्म नहीं होते .सारे ग्रह यहाँ बृहस्पति जो सूर्य के भी गुरु हैं के घर में आकर ज्ञानी ध्यानी होने की कोशिश करते है ,हम बृहस्पति से कम नहीं वाले अंदाज़ में .
10-मकर (Capricorn)- इस राशी को शनि ग्रह ने अपना पहला घर बनाया .शनी सूर्य के पुत्र हैं और उनसे एकदम नाराज़ .सूर्य रोशनी है तो वो अन्धकार है .शनि सूर्य के सभी मित्रों से नाराज़ रहते हैं .इस राशि में सभी ग्रह डर डर के काम करते हैं .खुद शनि भी इस राशी में अपने रूखे और कठोर स्वभाव के साथ ही रहते हैं .शनि को म्हणत पसंद है और इस राशी में कठिन श्रम करना पड़ता है .शनि को सांसारिक सुखों की चमक दमक बिलकुल पसंद नहीं इसलिए सारे ग्रह वैराग्य धारण कर लेते हैं .सबसे बुरा हाल होता है बृहस्पति ग्रह का क्योंकि शनि जो सूर्य (जो बृहस्पति का मित्र है ,सौरमंडल का राजा है)का पुत्र है को लिहाज़ लिहाज़ में कुछ कह भी नहीं पाते हैं और शनि को बृहस्पति और उनकी कोई बात पसंद भी नहीं हैं अतः बृहस्पति का इस राशि में सबसे बुरा हाल होता है .
 शनि को सबसे ज्यादा गुस्सा मंगल ग्रह पर आता है क्योंकि  मंगल ग्रह    हर समय सूर्य के लिए ,सूर्य की रक्षा में तत्पर रहता है और शनि क्योंकि सूर्य का पुत्र है इसलिए सूर्य का सेनापति मंगल उसे कुछ कह भी नहीं पाता है, डरा हुआ रहता है मगर मंगल  जब अपने राजा सूर्य के नाराज़ पुत्र शनि की मकर राशी में आता है तो हमेशा से ज्यादा खुश रहता है .क्यों? क्योंकि वीर सेनापती अपने शत्रु के घर में पहुंचकर दुखी थोड़े ही होगा उसका जोश तो कई गुना बढ़ जाएगा !इस राशी में मगल ग्रह का सबसे शुभ फल जानना चाहिए .
11- कुम्भ (Aquarius)-यह शनि  ग्रह के हिस्से में आयी दूसरी राशि है या शनि ग्रह का यह दूसरा  घर है .यहाँ आते आते शनि का गुस्सा कम हो जाता है .वो ये भाव पैदा कर लेते हैं कि --:"जाने दो ,और मैं कौनसा किसी से कम हूँ ! मैं भी सांसारिक सुखों को समझता हूँ और उनकी जीवन में अहमियत भी मानता हूँ ".इस राशि में सभी ग्रह अपना चुपचाप  रहकर शुभ फल देने की कोशिश करते हैं,बृहस्पति ग्रह भी ,क्योंकि इस राशि में उन्हें शनि का गुस्सा मकर राशि की तुलना में कम झेलना पड़ता है .
12-मीन (Pisces ) -यह  राशी जल तत्व प्रधान है .बारह राशियों में अंतिम राशी है .दिल को सुकून दे ऐसी है -इसलिए क्योंकि यह अंतिम राशी थी तो बृहस्पति को जिनका सभी ग्रह कम या ज्यादा सम्मान करते है को मिल गयी .इस राशी में सबसे बुरा फल बुध ग्रह देता है क्योंकि बृहस्पति जो उसके पिता हैं से वो नाराज़ रहता है और यह राशि बृहस्पति की अपनी प्रिय राशि है तो बस बुध ग्रह का यहाँ आते ही मूड खराब हो जाता है ,वो हमेशा काम बिगड़ दो के मूड में रहते हैं .वहीं शुक्र ग्रह यहाँ आकर कुछ ज्यादा ही खुश हो जाता है क्यों? क्योंकि शुक्र ग्रह जिसके देवता शुक्राचार्य को माना जाता है .शुक्राचार्य असुरों के गुरु हैं और बृहस्पति से किसी भी बात में कम न होते हुए भी उन्हें बनना तो असुरों का गुरु पड़ा जो देवताओं से हार जाते हैं इसलिए बृहस्पति की इस राशि में  आने पर शुक्र को लगता है--- Dream come true. बाक़ी सारे ग्रह बृहस्पति(देवताओं के गुरु होने की Name and Fame enjoy करने वाले ) के इस घर में अपना सुंदर स्वभाव और रूप दिखाने की कोशिश करते हैं
अभी तक हमने थोड़ा समझा है कि नौ ग्रह कौनसे हैं और 12 राशियों में उनके अपने घर कौनसे हैं .
जैसे आप और हम अपने किसी घर से तो ,उसकी (location ,construction) सुख सुविधा से खुश होते हैं उसी तरह यह नौ ग्रह भी अपने किसी घर में तो खुश होते हैं और किसी घर में बस काम चलाते हैं .इसी तरह अब हम बारह राशियों की (location ,construction) सुख सुविधा की बात करेगे और नौ ग्रहों के स्वभाव की बात करेंगे तो समझ जायेंगे कि
नौ ग्रहों को उनके व्यक्तित्व को जाने और उन्हें मानव समझें
बारह राशियों को उनका घर माने .
काम के सिलसिले में ये नौ ग्रह अपने घर में नहीं रहते ,घूमते  रहने के लिए विवश हैं .
इस घूमने में कभी ये अपने घर होते हैं और कभी अपने मित्र के घर
कभी ये नौ ग्रह अपने शत्रु के घर होते हैं तो कभी ये किसी घर को अपने शत्रु  ग्रहों या मित्र ग्रहों के साथ SHARE करने के लिए विवश होते हैं.
इन ग्रहों का अपना जो व्यक्तित्व है और  सौरमंडल के राजा सूर्य से जो इनका जो रिश्ता है या  स्थिति है वही इनकी शक्ति है  .
अपनी शक्ति ये जिस राशी या घर में बैठे होंगे वहां प्रदर्शित करेंगे मगर उनका मूड कैसा है उस पर उनके काम का असर होगा .
अतः ये बैठकर शक्ति प्रदर्शन करते हैं और अपनी द्रष्टी से जिस घर को देखते हैं उस घर के शुभ और अशुभ भाव को बढ़ा देते हैं .AND IT ALL DEPENDS UPON THEIR MOOD ONLY.
HAHA......LOOKS UNBELIEVABLE! No do not doubt ...

ग्रहों के अपने घर (House)अर्थात 12 राशियाँ

अब हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि वो कौनसी चीज़ें हैं जों इन ग्रहों को खुश या नाराज़ करती हैं ,यह जानने के लिए हमें पहले यह जानना होगा कि ये खुद क्या है .जब हम दूध की property जान लेते हैं तो ये भी जान लेते है कि वो कैसे और कब खराब हो जाएगा .

ये सारे ग्रह बारह राशियों में घूमते  रहने के लिए विवश हैं .इन बारह राशियों में कोई घर House  (या कहें राशी ) तो उनका अपना होता है और कोई घर House या राशि उनके मित्र की ,कोई घर (हाउस)उनके शत्रु का होता है और या फ़िर कोई घर (House ) में उनके साथ उनका कोई मित्र बैठकर उनका मूड अच्छा रखता है तो कोई घर( House )में अपने शत्रु के साथ बैठने से इनका मूड खराब हो रहा होता है .बात इतने भर की होती तो क्या कहने हैं मगर इसके अलावा इन ग्रहों के पास जिस घर (हाउस) में बैठते हैं उस घर (House ) पर तो अपनी शक्ति प्रदर्शन का अधिकार होता ही है मगर इन सभी ग्रहों की अपनी - अपनी (कई प्रकार की शक्तियों से संपन्न )नज़र भी होती है ये अपनी नज़र   से जिस घर (House )को देखते हैं उस घर का भाव या  तो शुभ कर देते हैं या तो अशुभ कर देते हैं ,इसके अलावा ये अपनी नज़र  से जिस घर (House )को देखते हैं उस घर( हाउस) के शुभ भाव को (फल ) को कई गुना तक बढ़ा सकते हैं या बुरे भाव या फल को कई गुना अधिक बुरा कर सकते हैं ,मगर ये सब उनके मूड पर निर्भर करता है ,उनका मूड कैसे बनता है और बिगड़ता है ये हम हमारे दैनिक जीवन की बातों से ही समझने की कोशिश करेंगे .यहाँ एक बात अभी पहले याद कर लेते है कि सभी नौ ग्रहों की सातवीं दृष्टी होती है ,इसका अर्थ है कि वो जिस घर(House )  में बैठे होते हैं उस घर( House )को गिनते हुए यदि हम आगे चलेंग तो जो सातवाँ घर  (House )होता है वहां उनकी सातवीं दृष्टी होती है और वो अपनी इस सातवीं दृष्टी या नज़र से अपने से सातवें घर का (House )भाव कैसे कम या ज्यादा कर रहे होते हैं हम इन ग्रहों के स्वभाव के बारे में जानेगे तो समझ जायेंगे .अभी इसी समय हमारे लिए यह भी जान लेना जरूरी है कि जिस तरह हम किसी भी घर House में रहते हैं तो हमें उस घर ( House )का कोई कमरा तो पसंद आता है और कोई बिलकुल नहीं पसंद आता ,इसी तरह जब ये नौ ग्रह किसी एक राशि में होते है तो वो राशी इनकी पसंद की होती है या नहीं मगर उस राशी के कुछ हिस्से होते हैं जों उन्हें कुछ ज्यादा या कम पसंद होते हैं वो हिस्से क्या हैं? वो हिस्से नक्षत्र हैं अर्थात हर राशी के अंतर्गत लगभग तीन नक्षत्र आते हैं उन नक्षत्रों का इन नौ ग्रहों में से ही कोई न कोई मालिक होता है और इनकी उस मालिक से कितनी बनती  है या ठनती है इसी बात पर निर्भर करता है कि उनकी उस मालिक से कैसी दोस्ती और कैसी दुश्मनी है .
अब समय है सबसे पहले यह जान लेने का कि बारह राशियाँ कौनसी हैं और उनके मालिक कौन हैं---------
1.मेष Aries -मंगल (Mars)ग्रह की राशी  या कहें उसका सौरमंडल में मंगल ग्रह का अपना और  पहला घर .
2.वृष Taurus-शुक्र(Venus) ग्रह की राशी या कहें कि  सौरमंडल में शुक्र ग्रह का  अपना और पहला घर.

3.मिथुन Gemini-बुध (Mercury) ग्रह की राशि या  कहें कि उसका सौरमंडल में बुध ग्रह का अपना और पहला घर.
4.कर्क Cancer-चन्द्रमा (The Moon ) हमारे ज्योतिष शाश्त्र में चंद्रमा  का अपना एक मात्र  घर या राशी .
5.सिंह Leo -सूर्य (The Sun) का अपना एक मात्र घर या राशी .
6.कन्याVirgo -बुध (Mercury) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में बुध ग्रह का अपना दूसरा घर जहां वो बच्चा जैसा कम और बड़ों जैसा ज्यादा रहता है .

7.तुला Libra-शुक्र (Venus) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में शुक्र ग्रह का अपना दूसरा घर जहां शुक्र  ग्रह अपनी पूरी रूमानियत को ज़िंदा रखता  है  .
8.वृश्चिक Scorpio-मंगल (Mars) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में मंगल ग्रह का अपना दूसरा घर.
9.धनु Sagittarius-बृहस्पति(Jupiter) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में अपना पहला घर.
10.मकर Capricorn -शनि (Saturn) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में अपना पहला घर.
11.कुम्भ Aquarius -शनि (Saturn) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में अपना दूसरा घर घर.
12.मीन Pisces  -बृहस्पति (Jupiter) ग्रह की राशि या उसका सौरमंडल में अपना दूसरा घर .

आपकी संपत्ति ,मानसिक या शारीरिक या मन के सुख ,प्रेम या विवाह को जानिये ,ग्रहों के मूड से .

अपना स्वभाव ,अपनी मनोदशा   जानिए,  अपने जन्म के समय उपस्थित ग्रहों की मनोदशा से .जैसे हमारा स्वभाव हमारे आसपास के माहौल से बनता है -जैसे यदि हमको  भूख लगी है और फिल्म देखने जाने का निमंत्रण मिले तो हमारी  प्रतिक्रया क्या होगी ,वैसे ही यदि हम  बोर हो रहे हों और हमको फिल्म देखने का निमंत्रण  मिले तो हमारी  प्रतिक्रया क्या होगी .ठीक इसी तरह हमारी जन्म पत्रिका के ग्रहों की प्रतिक्रया रहती है -उनके अपने माहौल से .
इस विषय कों अच्छी तरह समझने के लिए हम पहले नौ ग्रहों के नाम और उनके स्वभाव कों समझेंगे .इन नौ ग्रहों में से सात ग्रह तो दृश्यमान हैं ,किन्तु राहू और केतु नामक  दो ग्रह अदृश्य हैं .सबसे पहले नौ ग्रहों के नाम और सौरमंडल में उनकी स्थिति (उनका स्थान )----
सूर्य (The Sun ) - हमारे सौरमंडल का राजा . और नौ ग्रहों में अकेला तारा जिसके चारों तरफ बाक़ी ग्रह घूमते  हैं .2 चंद्रमा (The Moon ) -हमारी अपनी पृथ्वी का उपग्रह .यह ग्रह नहीं है किन्तु पृथ्वी के अन्य  ग्रहों से अधिक पास होने के कारण  ,पृथ्वी के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डालनेवाला खगोलीय पिंड .सौरमंडल में सूर्य(The Sun) का मंत्री .
3  मंगल (Mars) -यह ग्रह सूर्य का सेनापति(Commando) है .आज की भाषा में कहा जाय तो आज के जमाने का commando .4.बुध -(Mercury)यह सौरमंडल में बच्चा(baby) ग्रह है इसलिए अपनी यात्रा में सूर्य(The Sun) इसे अधिक से अधिक अपने साथ रखता है ताकि यह बच्चा ग्रह अन्य बड़े ग्रहों से या अकेला हो कर डरे नहीं .सौर मंडल में इसे व्यापारी (बनिया,Businessman  ) कह सकते हैं .
5.बृहस्पति(Jupiter) -यह ग्रह अपने विशालकाय शरीर के लिए जाना जाता है .सौमंडल में गुरु की पदवी मिली है .सूर्य (The Sun )का भी ये गुरु तो है ही मगर  मित्र भी है .6.शुक्र -(Venus)यह असुरों का गुरु है .गुरु होने के कारण ज्ञानी तो है मगर असुरों का गुरु होने के कारण भौतिक सुखों में भी लिप्त है .इसलिए आज के जमाने के कलाकार कहा जा सकता है .
7.शनि (Saturn)-यह ग्रह सूर्य(The sun ) का पुत्र है लेकिन सूर्य(The Sun) ने इसकी माँ छाया(Shadow) का सम्मान नहीं किया था इसलिए सूर्य(The Sun) से ,अपने पिता से  नाराज़ रहता है और सूर्य(The Sun)से बहुत दूर रहता है .धीरे चलता है इसलिए शनि नाम है .आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है .
8.राहू (Rahu)-यह ग्रह असुर है .यह अदृश्य रहता है . वैसे ऐसा कोई काम नहीं है जो राहू नहीं कर सकता है .राहू सारे अच्छे और बुरे काम कर सकता है और बाक़ी सारे ग्रह जितनी ताकत से करते हैं उससे भी बहुत ज्यादा प्रभावशाली तरीके से .लेकिन इसके स्वभाव और समझ से इसे आतंकवादी कहा जा सकता है .
9.केतु -(Ketu)यह राहू का ही एक भाग है .और स्वभाव और कार्य करने में राहू जैसा ही है .

Monday, September 24, 2012

दीपक  तले अन्धेरा ?
दीपक   का नहीं
  दीपक  के जन्म की दास्तान है
 दीपक के अस्तित्व की पहचान है
दीपक     तले अन्धेरा
  दीपक का विद्रोह है ,अँधेरे से
दीपक का नृत्य  है उजाले  के गीत पर
दीपक तले अँधेरा
दीपक का प्रश्न है ---
खुद से
दीपक का आश्चर्य है
खुद के होने पर
दीपक तले अन्धेरा
अंधेरी राहों पर चलनेवालों का सूरज है
एक यक्ष प्रश्न है
युधिष्ठिर कहाँ है ?

Saturday, September 15, 2012

वक्त को अहसास होने दो
जो खास है आज उसकी बात होने दो .
बनाकर रोज़ लकीरें मिटाता है वो दूसरों की
आज आईने से उसकी पहचान होने दो .
रात के घने अँधेरे में उजाले की बात करते ही हैं
कभी दिन के उजाले कों भी सलाम का अहसास होने दो.
आवाज़ न दो दिलबर की तासीर है दिल को घर बनाता नहीं
वो जहाँ जाए बस उसे ही दिल बनकर धडकने दो.

Monday, September 10, 2012

SAM in TAAL system of Indian Music and MOKSH (Salvation )in Hindu Relisgion and Philosophy

हिंदू धर्म और संस्कृति  मानवता की एक   ऐसी अक्षुण बहती धारा है जिसकी निरंतरता ने पूरे संसार को अभिभूत कर रखा है .इसे सनातन धर्म नाम भी दिया गया है .सनातन-------
अर्थात जों हमेशा से है और हमेशा रहेगा ,वक्त की कोई भीकैसी भी तीखी कुल्हाड़ी उसे काट कर उसके अस्तित्व कों ख़त्म नहीं कर सकती.
विश्व के बाकी धर्म जहाँ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों कों शक की निगाह से देखते हैं ,और एक दूसरे कों नीचा दिखाते रहे हैं ,हिन्दू धर्म उन सबके विपरीत व्यवहार करता है ,उन सबकी सारी अच्छी बातें अपने में ऐसे समा लेता है जैसे वो खुद उसकी अपनी ही हो ,क्यों ?क्योंकि दूसरे धर्मों के सारे सार्थक गुण इस धर्म में शुरू से किसी किसी रूप में समाये हुए ही हैं ...
इसकी निरंतरता का मूल मंत्र इसे खूबसूरत भारतीय संगीत की ताल पद्धति की अदभुत तकनीक से मिला है .जों साथ एक कवि का उसकी कलम और कागज़ देते है और किसी चित्रकार का उसका कैनवास और रंग देते है ,वही साथ एक   भारतीय संगीतकार कों भारतीय संगीत की ताल पद्धति और लय पर उसका अधिकार देती है -----
भारतीय संगीत की ताल पद्धति में एक अत्यंत रोचक स्थान है ---सम .
भारतीय ताल पद्धति निश्चित संख्या की गिनती पर आधारित है उस निश्चित संख्या की गिनती को सम पर अर्थात पहली मात्रा से शुरू हो कर वापस पहली मात्रा पर पहुंचना होता है ।भारतीय संगीत में कोई भी रचना जीवन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को प्रकट करने में पूरी तरह स्वतन्त्र होते हुए भी अपनी मंजिल सम को ही मानकर चलती है ....अपनी बात हर रचना सम पर ख़त्म करती है ॥जितनी खूबसूरती से बात कहनी होती है उतनी ही खूबसूरती से समय पर सम पर अपनी बात ख़त्म करनी होती है ...भारतीय ताल पद्धति धरती और अंतरिक्ष के अन्य ग्रह ,उपग्रह और तारों की तरह गोलाकार घूमती है ...जबकि पश्चिमी ताल पद्धति एक दिशा में सीधे चलती है ..
भारतीय तालों की निश्चित संख्या की मात्राएँ निश्चित संख्या के विभागों में विभाजित हो कर हर चाल की चलन (उसके चलने का तरीका )निर्धारित करती हैं ,हर ताल का ठेका किसी भाव विशेष को आकार देता है .अर्थात A particular emotion finds its place in a particular taal having a particular theka (bol).

यही संगीत की एक ऐसी तकनीक है जिसने दोनों संस्कृतियों के दर्शन को प्रभावित कर रखा है ..भारत में मोक्ष(salvation)की कल्पना है ,while WEST does not nourish this theory of SALVATION.
हिंदू सभ्यता के देवता लीलाधर है (खेल रचने और खेलने वाले )जबकि पश्चिम के लिए देवताओं का यह रूप कभी समझ में आने वाली पहेली है ..खेल में ही निश्चित समय में अपनी योग्यता का परिचय देकर या प्रदर्शन कर समय पर अपनी मंजिल पर पहुंचना होता है ...इसीमें खिलाडी और दर्शक का रिश्ता जुड़ा है .. इस रिश्ते का आधार आनंद है ...इसकी मंजिल आनंद है ...हिंदू संस्कृति संसार के रचयिता को सत चित्त आनंद स्वरूप में देखती है और संसार को सत ,राज और तम के गुणों का अखाडा या खेल का मैदान ..........ये हिंदू संस्कृति और दर्शन का वो तत्व है जिसने मोक्ष की कल्पना की है ....और यही हिंदुत्व की धारा को अक्षुण बनाये है ....हिन्दू धर्म कों मानने वाला सत ,राज और तम नामक गुणों को मोक्ष मार्ग पर पहुँचने वाली बाधा या मित्र समझ कर काम लेता है .इसी तरह भारतीय संगीत का विद्यार्थी हर मुश्किल या सरल रचना को प्रस्तुत करते समय जानता है कि उसे समय पर सम पर पहुँच कर विश्राम करना है और एक नयी रचना को प्रस्तुत करने की तैयारी करनी है या उससे साक्षात् करने के लिए तैयार होना है ...हमारे पास मोक्ष है ...अर्थात सम है ...अर्थात जीवन के परे ---इस जीवन से खूबसूरत जीवन को पाने का विशवास है और पुनः लौटकर इस जीवन में कर ...इस जीवन में अधूरे रह गए  अपने सपनों को पूरा करने का आश्वासन भी ....हमारे लिए जीवन एक निरंतर अक्षुण बहती धारा है इसीलिए हमारी संस्कृति भी सारे तूफानों और आक्रमणों को सहते हुए भी अपनी पहचान बचाए हुए है या बनाये हुए है . अतः हिंदुत्व - वो जीवन पद्धति है जो अपने नाम के लिए लड़े बिना भी अपनी पहचान को अक्षुण बनाये रख सकती है ..वो अपने ऊपर आक्रमण करने वालों को अपने में आत्मसात कर अक्षुण बनी रहती है ....यदि कोई हिंदूवादी भारत का प्रधान मंत्री बनेगा तो फासिस्ट हिन्दू होगा इसमें शक है .....और यदि होगा तो हिंदुत्व की मुख्य धारा से अत्यंत दूर होगा अतः अंत में ----भारतीय संगीत की ताल पद्धति भारतीयता की या यूँ कहें हिन्दू धर्म की जुड़वां बहन है और हिन्दू धर्म की अक्षुण बहती धारा की ताकत है ..........I am proud of being a Hindu ,I do love and respect every religion ,I feel it like my own ,I am happy because ---हम सनातन हैं and always would be.....

Monday, September 3, 2012

सनातन धर्म ,हिन्दू धर्म और भारतीय संगीत की ताल पद्धति

 
हिंदू धर्म और संस्कृति  मानवता की एक   ऐसी अक्षुण बहती धारा है जिसकी निरंतरता ने पूरे संसार को अभिभूत कर रखा है .इसे सनातन धर्म नाम भी दिया गया है .सनातन-------
अर्थात जों हमेशा से है और हमेशा रहेगा ,वक्त की कोई भी,  कैसी भी तीखी कुल्हाड़ी उसे काट कर उसके अस्तित्व कों ख़त्म नहीं कर सकती.
विश्व के बाकी धर्म जहाँ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों कों शक की निगाह से देखते हैं ,और एक दूसरे कों नीचा दिखाते रहे हैं ,हिन्दू धर्म उन सबके विपरीत व्यवहार करता है ,उन सबकी सारी अच्छी बातें अपने में ऐसे समा लेता है जैसे वो खुद उसकी अपनी ही हो ,क्यों ?क्योंकि दूसरे धर्मों के सारे सार्थक गुण इस धर्म में शुरू से किसी न किसी रूप में समाये हुए ही हैं ...
इसकी निरंतरता का मूल मंत्र इसे खूबसूरत भारतीय संगीत की ताल पद्धति की अदभुत तकनीक से मिला है .जों साथ एक कवि का उसकी कलम और कागज़ देते है और किसी चित्रकार का उसका कैनवास और रंग देते है ,वही साथ एक   भारतीय संगीतकार कों भारतीय संगीत की ताल पद्धति और लय पर उसका अधिकार देती है -----
भारतीय संगीत की ताल पद्धति में एक अत्यंत रोचक स्थान है ---सम .
भारतीय ताल पद्धति निश्चित संख्या की गिनती पर आधारित है उस निश्चित संख्या की गिनती को सम पर अर्थात पहली मात्रा से शुरू हो कर वापस पहली मात्रा पर पहुंचना होता है ।भारतीय संगीत में कोई भी रचना जीवन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को प्रकट करने में पूरी तरह स्वतन्त्र होते हुए भी अपनी मंजिल सम को ही मानकर चलती है ....अपनी बात हर रचना सम पर ख़त्म करती है ॥जितनी खूबसूरती से बात कहनी होती है उतनी ही खूबसूरती से समय पर सम पर अपनी बात ख़त्म करनी होती है ...भारतीय ताल पद्धति धरती और अंतरिक्ष के अन्य ग्रह ,उपग्रह और तारों की तरह गोलाकार घूमती है ...जबकि पश्चिमी ताल पद्धति एक दिशा में सीधे चलती है ..
भारतीय तालों की निश्चित संख्या की मात्राएँ निश्चित संख्या के विभागों में विभाजित हो कर हर चाल की चलन (उसके चलने का तरीका )निर्धारित करती हैं ,हर ताल का ठेका किसी भाव विशेष को आकार देता है .अर्थात A particular emotion finds its place in a particular taal having a particular theka (bol).

यही संगीत की एक ऐसी तकनीक है जिसने दोनों संस्कृतियों के दर्शन को प्रभावित कर रखा है ..भारत में मोक्ष(salvation)की कल्पना है ,while WEST does not nourish this theory of SALVATION.
हिंदू सभ्यता के देवता लीलाधर है (खेल रचने और खेलने वाले )जबकि पश्चिम के लिए देवताओं का यह रूप कभी न समझ में आने वाली पहेली है ..खेल में ही निश्चित समय में अपनी योग्यता का परिचय देकर या प्रदर्शन कर समय पर अपनी मंजिल पर पहुंचना होता है ...इसीमें खिलाडी और दर्शक का रिश्ता जुड़ा है .. इस रिश्ते का आधार आनंद है ...इसकी मंजिल आनंद है ...हिंदू संस्कृति संसार के रचयिता को सत चित्त आनंद स्वरूप में देखती है और संसार को सत ,राज और तम के गुणों का अखाडा या खेल का मैदान ..........ये हिंदू संस्कृति और दर्शन का वो तत्व है जिसने मोक्ष की कल्पना की है ....और यही हिंदुत्व की धारा को अक्षुण बनाये है ....हिन्दू धर्म कों मानने वाला सत ,राज और तम नामक गुणों को मोक्ष मार्ग पर पहुँचने वाली बाधा या मित्र समझ कर काम लेता है .इसी तरह भारतीय संगीत का विद्यार्थी हर मुश्किल या सरल रचना को प्रस्तुत करते समय जानता है कि उसे समय पर सम पर पहुँच कर विश्राम करना है और एक नयी रचना को प्रस्तुत करने की तैयारी करनी है या उससे साक्षात् करने के लिए तैयार होना है ...हमारे पास मोक्ष है ...अर्थात सम है ...अर्थात जीवन के परे ---इस जीवन से खूबसूरत जीवन को पाने का विशवास है और पुनः लौटकर इस जीवन में आ कर ...इस जीवन में अधूरे रह गए  अपने सपनों को पूरा करने का आश्वासन भी ....हमारे लिए जीवन एक निरंतर अक्षुण बहती धारा है इसीलिए हमारी संस्कृति भी सारे तूफानों और आक्रमणों को सहते हुए भी अपनी पहचान बचाए हुए है या बनाये हुए है . अतः हिंदुत्व - वो जीवन पद्धति है जो अपने नाम के लिए लड़े बिना भी अपनी पहचान को अक्षुण बनाये रख सकती है ..वो अपने ऊपर आक्रमण करने वालों को अपने में आत्मसात कर अक्षुण बनी रहती है ....यदि कोई हिंदूवादी भारत का प्रधान मंत्री बनेगा तो फासिस्ट हिन्दू होगा इसमें शक है .....और यदि होगा तो हिंदुत्व की मुख्य धारा से अत्यंत दूर होगा अतः अंत में ----भारतीय संगीत की ताल पद्धति भारतीयता की या यूँ कहें हिन्दू धर्म की जुड़वां बहन है और हिन्दू धर्म की अक्षुण बहती धारा की ताकत है ..........I am proud of being a Hindu ,I do love and respect every religion ,I feel it like my own ,I am happy because ---हम सनातन हैं and always would be.....

लय और ताल

लय और ताल
लय बिना संगीत की कल्पना करना संभव नहीं .
भारतीय संगीत में तो ताल के बिना भी संगीत की कल्पना असंभव ही है .
ताल शब्द से जों सबसे पहले चीज़ या शब्द दिमाग में आता है वो है rhythm .
लेकिन भारतीय संगीत में ताल rhythm के सन्दर्भ में वो तकनीक है जिसे जाने और सीखे बिना भारतीय संगीत का कोई भी कलाकार चाहे वो गायक हो ,कोई संगीत वाध्य बजाता हो या कोई भी नृत्य करता हो (ताल शाष्त्र को पढ़े बिना ,जाने बिना) अपने चयनित विषय की पहली पंक्ति भी नहीं सीख पायेगा .क्यों ?
भारतीय संस्कृति 5000 वर्ष पहले से ही एक परिष्कृत संस्कृति है .जब आज के विश्व की अन्य सभ्यताएं जंगलों में रह रही थी तब भारतीय संस्कृति अपने विकास के उस उच्चतम शिखर पर थी . जों आज के 21वीं सदी के लिए भी एक अध्ययन का विषय है .भारतीय संगीत भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तरह बहु आयामी रहा है .
इतिहास करवटें बदलता रहा- इतिहास के घने अन्धकार से निकलने में भारतीय समाज को अपनी पुरानी चेतना शक्ति प्राप्त करने प्रयास करना पड़ा होगा और उसमे समय लगा होगा ,किन्तु भारतीय संगीत का इतिहास तो यही बता है कि इतिहास का कोई भी पन्ना चाहे काले अक्षरों से लिखा हो या स्वर्ण अक्षरों से संगीत ने दोनों पन्नों पर अपना काम बिना किसी पक्षपात के किया . यद्यपि धारणा है कि ब्रिटिश काल में संगीत का पतन हुआ किन्तु मेरी समझ कहती है संगीत इस समय अपने लिए कुछ ठिकाने ढूंढ छिप कर बैठ गया ----पूरी शक्ति से विशाल वट वृक्ष की तरह पनपने के लिए ..उसने विष्णु दिगम्बर पलुस्कर और विष्णु नारायण भातखंडे जैसे संगीत के महा नायकों की कठिन तपस्या से अपने लिए वो राह बना ली जिससे आज वो जनसामान्य का भी उतना अपना है जितना कभी घरानेदारों का होता था .आज का संगीत अपने हर प्यार करने वाले का एकदम अपना है .
ताल के सदर्भ में इतनी बात का क्या फायदा ?
इसका उत्तर सिर्फ़ इतना है कि भारतीय rhythm शाष्त्र लय से आगे या कहें पहले बहुत कुछ है तथा भारतीय संगीत को सीखने की पहली सीढ़ी ताल को समझना है ,इस सीढी को पार कर के ही आप अपनी पसंद का वाध्य बजा सकते हैं ,गा सकते हैं या नाच सकते हैं ...
इतनी महत्वपूर्ण चीज़ ताल है क्या ?
ताल - मात्राओं के समूह को भारतीय संगीत में ताल कहते हैं .
हर ताल कुछ निश्चित संख्या के अंकों ( numbers ) से बनी होती है .
इन्हीं अंकों को मात्रा नाम दिया गया है ,क्यों ? -
क्योंकि मात्रा शब्द हिंदी भाषा का शब्द है ,जों किसी भी चीज़ को नापने के काम आता है या quantity बताने के काम आता है .
ताल में यही मात्रा शब्द ताल की लम्बाई का अनुमान लगाने के काम आता है ,उदहारण के लिए -तीनताल मे 16 मात्रा होती है अर्थात एक से लगाकर सोलह अंक से बनती है तथा दादरा ताल मे एक लगाकर 6 तक अंक होते है जिन्हें संगीत का विद्यार्थी इस तरह बताता है -तीनताल सोलह मात्रा से बनती है तथा दादरा ताल छह मात्रा से बनी होती है अतः यह अनुमान लगाना सरल हो जाता है कि तीनताल दादरा ताल से एक बड़ी ताल है .

ताल एक तरह का imaginary frame है या ढांचा है, जिसमे गीत के बोल फिट किये जाते है .इस तरह गीत का एक स्वरुप या rough ढांचा हमें मिलता है जिसमें लय की सहायता से फिनिशिंग टच (touch ) दिया जाता है ,लय जितनी correct होगी ताल के frame में तैयार गीत के rough ढाँचे की खूबसूरती उतनी ही ज्यादा होगी... ,ताल -concrete है , लय abstract है .
ताल को समझना और प्रस्तुत करना जितना सरल है लय को समझना उतना ही कठिन है ,एक कलाकार का लय पर जितना अधिक अधिकार होगा उसकी कला का जादू उतना ही ज्यादा होगा .
इसे उदहारण द्वारा समझना हो तो -नृत्य में पंडित बिरजू महाराज और गायन में लता मंगेशकर का जों जादू दशकों से संगीत जगत मैं छाया है उसमें
अन्य अनेक कारणों में इन दोनों कालजयी कलाकारों का सबसे बड़ा कारण लय पर असामान्य अधिकार होना है ,इसको मैं इस बात से सिद्ध करना चाहूंगी कि जिसने भी उनकी कला का साक्षात्कार किया किसी भी कारण से तथा किसी भी मन से ,उसके अंतर्मन के उन अंधियारे कोनो मैं रौशनी चमक उठी जिन कोनों का उसे खुद भी कभी भान नहीं था कि ये उसके खुद के हिस्से हैं .उसका जीवन इतनी दूर तक फैला है ,वो इतनी बड़ी दुनियां का मालिक है .

लय संगीत की आत्मा है .
जिस कलाकार का लय पर अधिकार है वो कला के क्षेत्र में नए -नए ब्रह्मांडों की रचना कर सकता है और करता है .किसी भी रचना में महसूस की जाने वाली भावना का एकमात्र कारण उसकी लय है .स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर सुरीली है ,उनके गायन में लय है वो सब है लेकिन वो जिस लय में शब्दों का उच्चारण करती है वो- गीत के शब्दों को ऐसा जीवन दान दान देता है कि वो गीत हमेशा के लिए अमर हो जाता है .
अतः ताल ---
A group of definite  number of Matras is known as Taal.
These definite  number of Matras are divided into number of divisions .
Every taal has definite number of Taali and Khali.
and to understand more about the properties of Taal-
MATRA-every Taal is made up of fix numbers and these numbers are known as Matra.
VIBHAG-The fix Matraas of every Taal is divided into fix divisions known as Vibhaag.
TAALI  /KHALI-while reciting a Taal on hand ,on the beginning of a new division we either clap or slightly bend our one palm ,clap is known as Taali and bending of palm is to show khali.
LAYA-Gati in Hindi or speed in English is known as Laya in music.
Speed =ditance upon time 
There are three types of Laya in music.
Vilambit Laya-it is slower than the speed we mostly adopt in our day to day life to do our daily work.
Madhya Laya-Its the same speed we are mostly accustomed to do our daily work,neither slow nor fast.
Drut Laya-It is faster than the Madhya Laya.