Monday, December 31, 2012

नए साल की सुबह
जंग खाए दरवाजों की ग्रीज़िंग कर गयी है
मट्मेली पडी दीवारों पर रंग कर गयी है
हर घर के सामने की सड़क कुछ और चौड़ी कर गयी है
इस साल की बाकी और सुबहे क्या करने वाली हैं ये तो उनके आने पर ही पता चलेगा
पर आज की नीलिमा आकाश की गुनगुनाती सी लग रही है
और मैं ठिठकी सी नए युग के आगमन के इंतज़ार में उसे मेरा साथी   समझ उसके गीत में मेरा भी खोया कोई सुर ढूँढ़ रही हूँ ............

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