Monday, September 3, 2012

सनातन धर्म ,हिन्दू धर्म और भारतीय संगीत की ताल पद्धति

 
हिंदू धर्म और संस्कृति  मानवता की एक   ऐसी अक्षुण बहती धारा है जिसकी निरंतरता ने पूरे संसार को अभिभूत कर रखा है .इसे सनातन धर्म नाम भी दिया गया है .सनातन-------
अर्थात जों हमेशा से है और हमेशा रहेगा ,वक्त की कोई भी,  कैसी भी तीखी कुल्हाड़ी उसे काट कर उसके अस्तित्व कों ख़त्म नहीं कर सकती.
विश्व के बाकी धर्म जहाँ अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए दूसरे धर्मों कों शक की निगाह से देखते हैं ,और एक दूसरे कों नीचा दिखाते रहे हैं ,हिन्दू धर्म उन सबके विपरीत व्यवहार करता है ,उन सबकी सारी अच्छी बातें अपने में ऐसे समा लेता है जैसे वो खुद उसकी अपनी ही हो ,क्यों ?क्योंकि दूसरे धर्मों के सारे सार्थक गुण इस धर्म में शुरू से किसी न किसी रूप में समाये हुए ही हैं ...
इसकी निरंतरता का मूल मंत्र इसे खूबसूरत भारतीय संगीत की ताल पद्धति की अदभुत तकनीक से मिला है .जों साथ एक कवि का उसकी कलम और कागज़ देते है और किसी चित्रकार का उसका कैनवास और रंग देते है ,वही साथ एक   भारतीय संगीतकार कों भारतीय संगीत की ताल पद्धति और लय पर उसका अधिकार देती है -----
भारतीय संगीत की ताल पद्धति में एक अत्यंत रोचक स्थान है ---सम .
भारतीय ताल पद्धति निश्चित संख्या की गिनती पर आधारित है उस निश्चित संख्या की गिनती को सम पर अर्थात पहली मात्रा से शुरू हो कर वापस पहली मात्रा पर पहुंचना होता है ।भारतीय संगीत में कोई भी रचना जीवन के प्रति अपनी संवेदनशीलता को प्रकट करने में पूरी तरह स्वतन्त्र होते हुए भी अपनी मंजिल सम को ही मानकर चलती है ....अपनी बात हर रचना सम पर ख़त्म करती है ॥जितनी खूबसूरती से बात कहनी होती है उतनी ही खूबसूरती से समय पर सम पर अपनी बात ख़त्म करनी होती है ...भारतीय ताल पद्धति धरती और अंतरिक्ष के अन्य ग्रह ,उपग्रह और तारों की तरह गोलाकार घूमती है ...जबकि पश्चिमी ताल पद्धति एक दिशा में सीधे चलती है ..
भारतीय तालों की निश्चित संख्या की मात्राएँ निश्चित संख्या के विभागों में विभाजित हो कर हर चाल की चलन (उसके चलने का तरीका )निर्धारित करती हैं ,हर ताल का ठेका किसी भाव विशेष को आकार देता है .अर्थात A particular emotion finds its place in a particular taal having a particular theka (bol).

यही संगीत की एक ऐसी तकनीक है जिसने दोनों संस्कृतियों के दर्शन को प्रभावित कर रखा है ..भारत में मोक्ष(salvation)की कल्पना है ,while WEST does not nourish this theory of SALVATION.
हिंदू सभ्यता के देवता लीलाधर है (खेल रचने और खेलने वाले )जबकि पश्चिम के लिए देवताओं का यह रूप कभी न समझ में आने वाली पहेली है ..खेल में ही निश्चित समय में अपनी योग्यता का परिचय देकर या प्रदर्शन कर समय पर अपनी मंजिल पर पहुंचना होता है ...इसीमें खिलाडी और दर्शक का रिश्ता जुड़ा है .. इस रिश्ते का आधार आनंद है ...इसकी मंजिल आनंद है ...हिंदू संस्कृति संसार के रचयिता को सत चित्त आनंद स्वरूप में देखती है और संसार को सत ,राज और तम के गुणों का अखाडा या खेल का मैदान ..........ये हिंदू संस्कृति और दर्शन का वो तत्व है जिसने मोक्ष की कल्पना की है ....और यही हिंदुत्व की धारा को अक्षुण बनाये है ....हिन्दू धर्म कों मानने वाला सत ,राज और तम नामक गुणों को मोक्ष मार्ग पर पहुँचने वाली बाधा या मित्र समझ कर काम लेता है .इसी तरह भारतीय संगीत का विद्यार्थी हर मुश्किल या सरल रचना को प्रस्तुत करते समय जानता है कि उसे समय पर सम पर पहुँच कर विश्राम करना है और एक नयी रचना को प्रस्तुत करने की तैयारी करनी है या उससे साक्षात् करने के लिए तैयार होना है ...हमारे पास मोक्ष है ...अर्थात सम है ...अर्थात जीवन के परे ---इस जीवन से खूबसूरत जीवन को पाने का विशवास है और पुनः लौटकर इस जीवन में आ कर ...इस जीवन में अधूरे रह गए  अपने सपनों को पूरा करने का आश्वासन भी ....हमारे लिए जीवन एक निरंतर अक्षुण बहती धारा है इसीलिए हमारी संस्कृति भी सारे तूफानों और आक्रमणों को सहते हुए भी अपनी पहचान बचाए हुए है या बनाये हुए है . अतः हिंदुत्व - वो जीवन पद्धति है जो अपने नाम के लिए लड़े बिना भी अपनी पहचान को अक्षुण बनाये रख सकती है ..वो अपने ऊपर आक्रमण करने वालों को अपने में आत्मसात कर अक्षुण बनी रहती है ....यदि कोई हिंदूवादी भारत का प्रधान मंत्री बनेगा तो फासिस्ट हिन्दू होगा इसमें शक है .....और यदि होगा तो हिंदुत्व की मुख्य धारा से अत्यंत दूर होगा अतः अंत में ----भारतीय संगीत की ताल पद्धति भारतीयता की या यूँ कहें हिन्दू धर्म की जुड़वां बहन है और हिन्दू धर्म की अक्षुण बहती धारा की ताकत है ..........I am proud of being a Hindu ,I do love and respect every religion ,I feel it like my own ,I am happy because ---हम सनातन हैं and always would be.....

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