Monday, October 1, 2012

राशियों का व्यक्तित्व

नौ ग्रहों के व्यक्तित्व को जानने  के बाद आईये हम समझते बारह राशियों को -जों इन ग्रहों के या तो घर है या ऑफिस जहां इन्हें अपने काम के लिए जाना ही पड़ता है -
1-मेष(Aries) -यह सबसे पहली राशी है और  अग्निप्रधान राशी है .सूर्य के सेनापति मंगल ग्रह ने सबसे पहले इस पर अपना अधिकार कर लिया -मैं सेनापति हूँ ,मैं सबसे पहले हूँ और मेरा सबसे पहला अधिकार है आदि आदि (Extreme of everything is a normal approach for  a warrior). अब आप समझ जायेंगे कि ये राशी आपको रिश्ते मित्र ,संपत्ति ,परिवार जों भी देगी अपनी मुहर लगाकर देगी -सैनिक का काम है तो हल्का फुल्का तो होगा ही नहीं .

2-वृष  (Taurus)-यह पृथ्वी प्रधान राशी है .नौ ग्रहों में  सृजनात्मक  (Creativity  production ,reproduction)  गुण शुक्र ग्रह (Venus) को  भाते  हैं  क्योंकि शुक्र ग्रह रूमानियत से भरा है इसलिए इस राशी को शुक्र ग्रह ने अपना बना लिया .यैसे भी असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने सोचा कि पहली राशि सूर्य (जों विष्णु का अवतार है) के सेनापति के पास चली गयी तो अपन मौक़ा न खोयो और इसको लेलो .यहाँ शुक्र अपना रूमानी स्वभाव ताले में बंद रखते हैं और चुपचाप अपना काम करते हैं ,हर जगह यदि रूमानियत ही दिखाते रहेंगे तो काम कब करेंगे यहाँ शुक्र बातें कम और काम के काम ज्यादा करते हैं .बाक़ी ग्रहों में मंगल को छोडकर सभी ग्रह अपना ठीक ठाक फल देने की कोशिश करते रहते हैं .
3-मिथुन (Gemini)- दो भाई की शक्ल की राशी है ,childish है by nature .  बुध ग्रह (Mercury ) जों स्वयम एक बच्चा है -को ये भा गयी ,उसने इसे ही अपना घर बना लिया .बुध ग्रह क्योंकि खुद बच्चा है इसलिए बाक़ी शक्तीशाली ग्रहों में अपना दिमाग लगाकर काम करता है .इसलिए मिथुन राशि में कोई ग्रह जाएगा तो मेष राशी की तरह ,मैं बलवान हूँ का tag नहीं लगाएगा ,वृष राशी की तरह सृजनात्मक भी नहीं होगा ,intellectual हो जाएगा .कोई भी ग्रह बच्चे बुध से नाराजगी दिखाकर अपनी जग हंसाई नहीं कराते और अपना काम इस राशि में अच्छी तरह अच्छे मूड में करते रहते हैं ,बस उन्हें बौधिक intellectual होना पड़ता है जो मंगल ग्रह जैसे सेनापति को बिलकुल पसंद नहीं ,इस घर या राशि में तो मंगल ग्रह की वीरता की वाट लगी रहती है .उसकी वीरता या जोश गलत जगह लग जाता है और उसकी जग हंसाई हो जाती है .
4-कर्क (Cancer ) -यह जल प्रधान राशि है .चंद्रमा जो अग्नि रूप सूर्य का मंत्री ,मित्र सब है ,ने दिमाग लगाकर इस राशी को अपना बना लिया .अतः इस राशि का मकान मालिक चंद्रमा है .चंद्रमा स्वयम जल रूप है ,सौन्दर्य प्रेमी है ,जों जीवन के भौतिक सुखों को जीनेवाला ग्रह है .यह सूर्य का मंत्री क्यों है ?क्योंकि चंद्रमा धरती का उपग्रह है और धरती का ही एक अंश है . हमारे सौरमंडल में पृथ्वी पर ही जीवन है अतः धरती का अपना हिस्सा ही यदि राजा जो कि सूर्य है का मंत्री बन जाएगा तो राजा का कार्य धरती पर  सुगमता से (easily ) हो जाएगा. है, ना मजेदार  बात ,भाई ...communication gap  कम  हो  जाएगा! ऐसी ठंडी खूबसूरत राशी में जा कर हर ग्रह अपना the best देने की कोशिश करता है .चंद्रमा जल(water) प्रधान है.पानी  को  कैसे - जिस बर्तन में डालोगे वैसा ही आकार ले लेगा ,राजा को ऐसे कूटनीती में माहिर मंत्री ही तो चाहिए .किसी को पता ही ना चले और उसका अपना बनकर उसके मन की बात निकल वाले .यहाँ पर फ़िर मंगल ग्रह को रोना आ जाता है क्योंकि वीर बहादुर सेनापति को चंद्रमा की तरह जीना नहीं आता और वो निराश और हताश हो जाता है .अन्यथा सभी अन्य ग्रह इस राशि में चंद्रमा के शत्रु हो तो भी अपना मूल स्वभाव भूल कर चंद्रमा की तरह  खूबसूरत ,ज्ञानी,ध्यानी बन जाते  है .इस राशी में सभी ग्रहों का फल शुभ ही जानना चाहिए .
5- सिंह (Leo  )- यह सूर्य की अपनी एकमात्र राशी है .सूर्य खुद अग्नि रूप है उसी तरह यह राशी भी अग्नि रूप है .इस राशी में भौतिक सुख कम और आत्मिक सुख अधिक कर के आंकने चाहिए .खुद सूर्य भी इस राशी में भौतिक सुख नहीं देता है क्योंकि भौतिक सुख  अग्नि के स्पर्श से ही नहीं उसकी निकटता से ही जल जाते है .
6-कन्या (Virgo) -यह राशी बुध ग्रह की अपनी दूसरी राशी है या कहें मकान है .यहाँ आते आते बुध ग्रह बच्चे से बड़ा हो जाता है .बुध को क्योंकि सूर्य का साथ ही अधिक भाता है अतः वह  बड़ा हो कर सूर्य की तरह ही दिखना चाहता है लंबा चौड़ा ,मोटे मोटे हाथ पैरों वाला .इस राशि में मंगल ग्रह जो बुध ग्रह से बहुत  नाराज़ रहता है (क्योंकि हर समय- हर बात पर गिनती करनेवाले ,व्यापार वाणिज्य में प्रवीण बुध से और मीठी मीठी बातें करके हमेशा सूर्य के साथ रहने की उसकी कला से मंगल नाराज़ रहता है क्योंकि यह उसके उसके स्वभाव के विपरीत है )वह अशुभ फल देता है बाक़ी सभी ग्रह इस राशि में जब किरायेदार की हैसियत से रहते हैं तो अपनी तरफ से बुध ग्रह के प्रति अपना प्रेम दिखाते हुए अच्छा फल देने की कोशिश करते हैं .
7-तुला(Libra)-यह शुक्र ग्रह की अपनी दूसरे नंबर की राशी है या घर है .शुक्र प्रेम का देवता है .रूमानियत से भरपूर .(Romantic in nature).यह राशी सभी ग्रहों को पसंद आये जैसी नहीं है .किन्तु हमेशा दुःख को सर्वोपरी मानने वाले शनि देव इस राशी में आते ही अपना स्वभाव बदल लेते  है  ,शुक्र ग्रह  के गुण अपनाने में सफल रहते हैं .शनि ग्रह का सबसे सुंदर फल इस राशि में मिलता है .मंगल यहाँ जितने तरह की  Romantic relationship try कर सकेगा करेगा .सूर्य क्योंकि राजा है इसलिए किसी का बुरा तो कर नहीं सकता बस इस घर में आके अपना राजा होने का गुण छोड़ गाने बजाने लगता है .
8- वृश्चिक (Scorpio)-यह राशी बहुत बड़ी .कंटीली झाड़ियों वाली उबड़ खाबड़ .दलदली जमीन वाली है .जब कोई काम करने से सभी डरने लगें तो एक सिपाही आगे आता है .हमारे सौरमंडल  का एकमात्र सिपाही या यूँ कहें Commando है मंगल ग्रह या Mars और इसने इस राशी को अपना दूसरा घर बनाया मगर मंगल खुद है अग्नि और ये राशी है दलदल वाली तो इस राशी में कितना धुंआ  होगा यह बहुत आराम से  समझा जा सकता है .इस दुखदायी राशी में क्योंकि सूर्य के सेनापती की राशी है तो यहाँ पर सूर्य और मंगल कुछ सीमा तक बृहस्पति भी अपना शुभ फल देने की कोशिश करते हैं किन्तु बाकी ग्रहों की तो जान मुसीबत में फसी रहती है .बुध ग्रह ,शुक्र ग्रह ,शनि ग्रह अपना सारा गुसा इसी राशी में आने पर निकालते है (क्या कहा !उनका गुस्सा शांत कैसे होगा ?)जब आप इतना समझ गए हैं तो धीरे धीरे उनका गुस्सा कम कैसे होगा यह भी जान जायेंगे .
9-धनु (Sagittarius )-बड़ी देर में बृहस्पति(Jupiter) जो सौरमंडल में सूर्य का  मित्र और गुरु हैं ने वृश्चिक राशी को देखकर  सोचा कि-" अब ले लो जो भी राशी मिले नहीं तो पता नहीं अंत में क्या लेना पड़े" .धनु राशी अग्नि प्रधान है ,लेनी तो सूर्य को चाहिए थी मगर सूर्य ने सोचा अभी तक बृहस्पति (Jupiter) के हिस्से में कुछ भी नहीं आया है सो बृहस्पती ने ले ली ये राशी .बृहस्पती जो मनुष्य जीवन के श्रेष्ठ भौतिक सुख (सांसारिक सुख ) देनेवाले हैं थोड़े वैराग्य को धारण कर लेते हैं क्योंकि यह राशी अग्नि प्रधान है .अतः अपने सांसारिक सुख कम कर देते हैं .भाई उन्हें गर्मी लगती है .जहां तक अन्य  ग्रहों की बात है तो वो सब यहाँ शैतानी नहीं करते है ,गुस्सा नहीं करते हैं भाई गर्मी तो उन्हें भी लगती है मगर शोर शराबा नहीं करते है हाँ इस राशी की गर्मी के कारण भौतिक या सांसारिक सुख तो अपनाप ही कम हो जाते हैं .बृहस्पति का घर है अतः ख़त्म नहीं होते .सारे ग्रह यहाँ बृहस्पति जो सूर्य के भी गुरु हैं के घर में आकर ज्ञानी ध्यानी होने की कोशिश करते है ,हम बृहस्पति से कम नहीं वाले अंदाज़ में .
10-मकर (Capricorn)- इस राशी को शनि ग्रह ने अपना पहला घर बनाया .शनी सूर्य के पुत्र हैं और उनसे एकदम नाराज़ .सूर्य रोशनी है तो वो अन्धकार है .शनि सूर्य के सभी मित्रों से नाराज़ रहते हैं .इस राशि में सभी ग्रह डर डर के काम करते हैं .खुद शनि भी इस राशी में अपने रूखे और कठोर स्वभाव के साथ ही रहते हैं .शनि को म्हणत पसंद है और इस राशी में कठिन श्रम करना पड़ता है .शनि को सांसारिक सुखों की चमक दमक बिलकुल पसंद नहीं इसलिए सारे ग्रह वैराग्य धारण कर लेते हैं .सबसे बुरा हाल होता है बृहस्पति ग्रह का क्योंकि शनि जो सूर्य (जो बृहस्पति का मित्र है ,सौरमंडल का राजा है)का पुत्र है को लिहाज़ लिहाज़ में कुछ कह भी नहीं पाते हैं और शनि को बृहस्पति और उनकी कोई बात पसंद भी नहीं हैं अतः बृहस्पति का इस राशि में सबसे बुरा हाल होता है .
 शनि को सबसे ज्यादा गुस्सा मंगल ग्रह पर आता है क्योंकि  मंगल ग्रह    हर समय सूर्य के लिए ,सूर्य की रक्षा में तत्पर रहता है और शनि क्योंकि सूर्य का पुत्र है इसलिए सूर्य का सेनापति मंगल उसे कुछ कह भी नहीं पाता है, डरा हुआ रहता है मगर मंगल  जब अपने राजा सूर्य के नाराज़ पुत्र शनि की मकर राशी में आता है तो हमेशा से ज्यादा खुश रहता है .क्यों? क्योंकि वीर सेनापती अपने शत्रु के घर में पहुंचकर दुखी थोड़े ही होगा उसका जोश तो कई गुना बढ़ जाएगा !इस राशी में मगल ग्रह का सबसे शुभ फल जानना चाहिए .
11- कुम्भ (Aquarius)-यह शनि  ग्रह के हिस्से में आयी दूसरी राशि है या शनि ग्रह का यह दूसरा  घर है .यहाँ आते आते शनि का गुस्सा कम हो जाता है .वो ये भाव पैदा कर लेते हैं कि --:"जाने दो ,और मैं कौनसा किसी से कम हूँ ! मैं भी सांसारिक सुखों को समझता हूँ और उनकी जीवन में अहमियत भी मानता हूँ ".इस राशि में सभी ग्रह अपना चुपचाप  रहकर शुभ फल देने की कोशिश करते हैं,बृहस्पति ग्रह भी ,क्योंकि इस राशि में उन्हें शनि का गुस्सा मकर राशि की तुलना में कम झेलना पड़ता है .
12-मीन (Pisces ) -यह  राशी जल तत्व प्रधान है .बारह राशियों में अंतिम राशी है .दिल को सुकून दे ऐसी है -इसलिए क्योंकि यह अंतिम राशी थी तो बृहस्पति को जिनका सभी ग्रह कम या ज्यादा सम्मान करते है को मिल गयी .इस राशी में सबसे बुरा फल बुध ग्रह देता है क्योंकि बृहस्पति जो उसके पिता हैं से वो नाराज़ रहता है और यह राशि बृहस्पति की अपनी प्रिय राशि है तो बस बुध ग्रह का यहाँ आते ही मूड खराब हो जाता है ,वो हमेशा काम बिगड़ दो के मूड में रहते हैं .वहीं शुक्र ग्रह यहाँ आकर कुछ ज्यादा ही खुश हो जाता है क्यों? क्योंकि शुक्र ग्रह जिसके देवता शुक्राचार्य को माना जाता है .शुक्राचार्य असुरों के गुरु हैं और बृहस्पति से किसी भी बात में कम न होते हुए भी उन्हें बनना तो असुरों का गुरु पड़ा जो देवताओं से हार जाते हैं इसलिए बृहस्पति की इस राशि में  आने पर शुक्र को लगता है--- Dream come true. बाक़ी सारे ग्रह बृहस्पति(देवताओं के गुरु होने की Name and Fame enjoy करने वाले ) के इस घर में अपना सुंदर स्वभाव और रूप दिखाने की कोशिश करते हैं

2 comments:

  1. awesome explanation....samah me na bhi aaye to bhi padhne me mza aa gya....god bless u dear

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  2. Really understood...thank you.

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