Sunday, November 8, 2009

खेल

रह रह कर लहर उठती है सागर में पर ,
सागर सागर है लहर तो नहीं

रह रह कर शब्द जुबाँ पे आते हैं पर
शब्द शब्द है दास्ताँ तो नहीं ।

तू जो लहरों को गिनता रहा
कभी खुश तो कभी उदास होता रहा
तू शब्दों को टटोलता रहा
कभी नायक तो कभी खलनायक पकड़ता रहा

मैं कभी सागर में छिपे मोती तुझे थमा न सकी
दास्ताँ मैं छिपा तेरा अक्स तुझे दिखा न सकी
तू.........

No comments:

Post a Comment